Friday 21 October 2022

आशा की उड़ान



 आशा की उड़ान  

पंख मिले पर आसमान न मिला,

लेकिन पंख का हौसला न हिला।


सिमटा रहा एक पिंजरे में तन,

तब भी मेरा विश्वास न हिला।


आशा की उड़ान मन रोज उड़ता रहा,

ख्वाबों को वह रोज बुनता रहा।


विश्वास था एक दिन मेरा भी समय आएगा,

कंस के कारागार की तरह पिंजरा मेरा खुल जाएगा।


फिर एक दिन कान्हा ने मुझे सुना,

और एक बार पिंजरा मेरा खुला।


संभावनाओं का आसमान था अपार,

और मैं उड़ने के लिए तैयार।


पहले ख्वाबों के फूल थे, अब यथार्थ के कांटे हैं,

अस्तित्व की पहचान को मेरे मुझसे ही वादे हैं।


और अब कहने को तैयार हूं कि

पंख मिले, आसमान भी मिला और

मेरी कल्पना को सम्मान भी मिला।


-- रंगोली अवस्थी

पुस्तकालय सूचना अधिकारी

पी.के.केलकर, आईआईटी

कानपुर


भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर

हिंदी साहित्यिक पत्रिका - अंतस




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